
कबीर वाणी भारत के मशहूर संत कबीर द्वारा लिखित एक संग्रह है, जिसमें उनके द्वारा रचित दोहे, शब्दावली और साक्षात्कार शामिल हैं। कबीर वाणी के दोहे वेदों, उपनिषदों और भजनों की गणना में की जाती हैं और इनका उद्देश्य अधिकतर धर्मानुयायियों को सत्य की ओर आकर्षित करना था।
कबीर वाणी में कई मुद्दे शामिल हैं जैसे ईश्वर, मनुष्य के जीवन का उद्देश्य, धर्म, समाज, महिलाओं के अधिकार, नैतिकता, और शांति आदि। इन सभी मुद्दों को उनके द्वारा बताए गए दोहों में संक्षिप्त रूप से व्यक्त किया गया है।
कबीर वाणी के दोहे आज भी लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और लोग इन्हें अपने जीवन के मंच पर उतारते हैं।
कबीर वाणी
माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
आया है किस काम को किया कौन सा काम
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी
मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी
चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय
साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो
जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी
कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा
बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा