December 8, 2023

चाणक्य

चाणक्य भारत के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ थे जिन्हें मौर्य साम्राज्य के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है। उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर भारत को एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभारा। चाणक्य एक बुद्धिजीवी व्यक्ति थे जिन्हें नीतिशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र की अच्छी जानकारी थी।

उन्होंने अपनी विद्वत्ता और बुद्धिमत्ता का उपयोग कर देश के विकास के लिए बहुत सारी योजनाओं का विकास किया। उन्होंने राज्य को चार अभिलेखों से लेकर सम्पूर्ण शासन व्यवस्था तक संचालित करने का तरीका बताया था। चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र के ग्रंथ आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं और न केवल भारत में बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का सम्मान किया जाता है।

परिचय

चाणक्य भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण और विख्यात विचारक, राजनीतिज्ञ और आचार्य थे। वह मौर्य साम्राज्य के समय में जन्मे थे और अपनी विद्वता और उनके अद्भुत विचारों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हुए थे। चाणक्य के विचार आज भी लोगों के जीवन में उपयोगी हैं और उनके नीतियों ने भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

चाणक्य के जन्म के बारे में कुछ निश्चित नहीं है। हालांकि, वह 4 वीं से 3 वीं सदी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के समय में जन्मे थे। उन्होंने मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य को अपने शिष्य और मंत्री के रूप में दीक्षा दी थी। चाणक्य ने अपने जीवन के दौरान कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है “अर्थशास्त्र” और “चाणक्य नीति”। चाणक्य के विचार और उनकी नीतियां भारतीय राजनीति, अर्थशास्त्र और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों द्वारा अप

चाणक्य नीति

चाणक्य नीति चाणक्य द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जो नीति शास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीति के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। इस ग्रंथ में चाणक्य ने अपनी विद्वत्ता, अनुभव और ज्ञान के आधार पर नीति के विषय में अनेक अप्रत्यक्ष तथ्यों का वर्णन किया है।

इस ग्रंथ में चाणक्य ने विभिन्न विषयों पर नीतियों का उपयोग बताया है, जैसे कि जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए, सफलता कैसे प्राप्त की जाए, दोषों से कैसे बचा जाए और व्यक्ति के विकास के लिए क्या किया जाना चाहिए।

चाणक्य नीति एक बहुत ही उपयोगी ग्रंथ है जो आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ग्रंथ सफलता के रहस्यों को समझने और अपने जीवन के लिए नेतृत्व कौशल को विकसित करने के लिए एक उत्कृष्ट स्रोत है।

  • किसी भी व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक ‘सीधा’ नहीं होना चाहिए। वन में जाकर देखो- सीधे तने वाले पेड़ ही काटे जाते हैं, टेढ़े को कोई नहीं छूता।
  • अगर कोई सांप जहरीला नहीं है, तब भी उसे फुफकारना नहीं छोड़ना चाहिए। उसी तरह से कमजोर व्यक्ति को भी हर वक्त अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
  • कभी भी अपने रहस्यों को (सिवाय अपने गुरु के) किसी के साथ साझा मत करो, यह प्रवृत्ति तुम्हें बर्बाद कर देगी।
  • हर मित्रता के पीछे कुछ स्वार्थ जरूर छिपा होता है। दुनिया में ऐसी कोई दोस्ती नहीं जिसके पीछे लोगों के अपने हित न छिपे हों, यह कटु सत्य है, लेकिन यही सत्य है।
  • अपने बच्चे को पहले पांच साल दुलार के साथ पालना चाहिए। अगले पांच साल उसे डांट-फटकार के साथ निगरानी में रखना चाहिए। लेकिन जब बच्चा सोलह साल का हो जाए, तो उसके साथ दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए।
  • संकट काल के लिए धन बचाएं। परिवार पर संकट आए तो धन कुर्बान कर दें। लेकिन स्वयं की रक्षा हमें अपने परिवार और धन को भी दांव पर लगाकर करनी चाहिए।

चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय

जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।

२. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता – ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य उपर्युक्त दोषों को स्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं। हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।

३. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।

४. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।

५. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्त्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।

६. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्त्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।

७. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंध में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

८. चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।

९. चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।

१०. चाणक्य कहते हैं कि बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।

११. वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, जिन्होंने बच्चों को ‍अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।

१२. चाणक्य कहते हैं कि अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।

१३. शिक्षा और अध्ययन की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत सौभाग्य से मिलता है, इसलिए हमें अपने अधिकाधिक समय का वे‍दादि शास्त्रों के अध्ययन में तथा दान जैसे अच्छे कार्यों में ही सदुपयोग करना चाहिए।

१४. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।

१५. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।

१६. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।

१७. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

१८. चाणक्य कहते हैं कि मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।

हम अपना हर कदम फूक फूक कर रखे. हम छाना हुआ जल पिए. हम वही बात बोले जो शास्त्र सम्मत है. हम वही काम करे जिसके बारे हम सावधानीपुर्वक सोच चुके है. 

चाणक्य की सीख में अनेक उपयोगी बातें होती हैं जो हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण चाणक्य की सीख हैं:

  1. जो अपने से बड़े होते हैं, उनसे नेक सलूक करना चाहिए।
  2. जीवन में सफलता के लिए ज्ञान और नैतिकता का संगम बहुत जरूरी है।
  3. जिसकी इच्छाशक्ति बड़ी होती है, उसकी कभी हार नहीं होती।
  4. व्यक्ति को व्यक्तित्व के संग्रह में देखना चाहिए, न कि उसकी धन की मात्रा में।
  5. व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिए, संचय और निवेश का महत्वपूर्ण रोल होता है।
  6. किसी भी काम को पूरा करने के लिए उसमें से सबसे मुश्किल टुकड़ा सबसे पहले करना चाहिए।
  7. नीतिशास्त्र में कहा जाता है कि आत्मसम्मान से बड़ी कोई वस्तु नहीं होती।
  8. निराशा से बचने के लिए धैर्य रखना चाहिए।
  9. नैतिकता के बिना अर्थ नहीं होता।
  10. बातचीत में सुनना जरूरी होता है, क्योंकि बिना सुने हम कुछ नहीं सीख सकते।

चाणक्य की कुटिया?

चाणक्य की कुटिया उनके वास स्थल के रूप में जानी जाती है। चाणक्य एक विदुषक, राजनीतिज्ञ और आचार्य थे और उनके समय में भारतीय समाज में कुटीर वास बहुत आम था। चाणक्य की कुटिया उनके वास स्थल के रूप में जानी जाती है, जो उनके शिष्यों के साथ उनकी दिनचर्या और शिक्षा के स्थान के रूप में काम में आती थी। चाणक्य के समय में लोग अपने आचरण और जीवन शैली के माध्यम से अपने विद्या और ज्ञान को साझा करते थे। चाणक्य की कुटिया उनके शिष्यों के लिए एक स्थान था जहां उनके साथ रहकर वे उनसे शिक्षा प्राप्त करते थे।

चाणक्य की कुटिया उनके द्वारा अध्यात्म, नैतिकता, राजनीति और अर्थशास्त्र की शिक्षा देने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान थी। इसे एक पाठशाला या गुरुकुल के रूप में भी समझा जा सकता है जहां शिष्य गुरु के साथ समय बिताते थे और उनकी दिशा-निर्देश में अपनी शिक्षा प्राप्त करते थे।